TOP BAGLAMUKHI SADHNA SECRETS

Top baglamukhi sadhna Secrets

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२२. श्रीकीलिन्यै नमः दुष्ट-शक्तियों को बाँधनेवाली शक्ति को नमस्कार।

नमामि बगलां देवीमासव-प्रिय – भामिनीम् ।

‘ रक्षोहणं वलग-हनं वैष्णवीमिदमहं तं वगलमुत्किरामि । ‘

२१. श्रीजृम्भिण्यै नमः सर्व-प्रकार से विकसित होनेवाली/प्रसारित होनेवाली शक्ति को नमस्कार

मदिरामोद-वनां प्रवाल-सदृशाधराम् । पान-पात्रं च शुद्धिं च, विभ्रतीं बगलां स्मरेत् ।

मां बगलामुखी यंत्र चमत्कारी सफलता तथा सभी प्रकार की उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कहते हैं इस यंत्र में इतनी क्षमता है कि यह भयंकर तूफान से भी टक्कर लेने में समर्थ है। माहात्म्य- सतयुग में एक समय भीषण तूफान उठा। इसके परिणामों से चिंतित हो भगवान विष्णु ने तप करने की ठानी। उन्होंने सौराष्‍ट्र प्रदेश में हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे कठोर तप किया। इसी तप के फलस्वरूप सरोवर में से भगवती बगलामुखी का अवतरण हुआ। हरिद्रा यानी हल्दी होता है। अत: माँ बगलामुखी के वस्त्र एवं पूजन सामग्री here सभी पीले रंग के होते हैं। बगलामुखी मंत्र के जप के लिए भी हल्दी की माला का प्रयोग होता है।

।। फल-श्रुति ॥इत्येवं वज्र-कवचं, महा-ब्रह्मास्त्र -संज्ञकम् । त्रि-सन्ध्यं यः पठेद् धीमान्, सर्वैश्वर्यमवाण्नुयात् ।।१न तस्य शत्रव: केऽपि, सखायः सर्व एव च। बलेनाकृष्य शत्रुं स्यात् सोऽपि मित्रत्वमाप्नुयात् ।।३शत्रुत्वे मरुता तुल्यो, धनेन धनदोपमः । रूपेण काम-तुल्यः स्याद्, आयुषा शूल-धृक् -समः१२॥४सनकादि-समो धैर्ये, श्रिया विष्णु-समो भवेत् । सः विद्यया ब्रह्म-तुल्यो, यो जपेत् कवचं नरः । ।५.

श्रीभैरव-ऋषये नमः शिरसि, विराट्-छन्दसे नमः मुखे, श्रीबगला-

‘विजय’ प्राप्त होती है और ‘पत्नी’ पुत्र-वती होती है।

पाठीन-नेत्रां परिपूर्ण-गात्रां, पञ्चेन्द्रिय-स्तम्भन-चित्त-रूपां ।

अर्थात् सुवर्ण जैसी वर्णवाली, मणि-जटित सुवर्ण के सिंहासन पर विराजमान और पीले वस्त्र पहने हुई एवं ‘वसु-पद’ (अष्ट-पद/अष्टापद) सुवर्ण के मुकुट, कण्डल, हार, बाहु-बन्धादि भूषण पहने हुई एवं अपनी दाहिनी दो भुजाओं में नीचे वैरि-जिह्वा और ऊपर गदा लिए हुईं, ऐसे ही बाएँ दोनों हाथों में ऊपर पाश और नीचे वर धारण किए हुईं, चतुर्भुजा भवानी (भगवती) को प्रणाम करता हूँ।

गम्भीरां च मदोन्मत्तां, स्वर्ण-कान्ति-सम-प्रभाम् । चतुर्भुजां त्रि-नयनां, कमलासन – संस्थिताम् ।।

४३. ॐ ह्लीं श्रीं रं श्रीरम्भायै नमः – दक्षांसे (दाँएँ कन्धे में) ।

ऋषि श्रीअत्रि द्वारा उपासिता श्रीबगला-मुखी

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